Friday, July 18, 2008


कविता मित्र की, पसंद मेरी
18 जुलाई/शुक्रवार/दस बजकर चालीस मिनट पर

गुफा


शुरू होता है यहां से
भय और अँधेरा

भय और अंधेरे को
भेदने की इच्छा भी

शुरू होती है यहीं से।
-कुमार अंबुज

Posted by Posted by अंगूठा छाप at 10:46 AM
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4 comments:

कुमार आलोक said...

शुरु होता है यहां से अंधेरा ...व्लाग पर जाते ही डर लगा ..लेकिन बाद की पंक्तियों ने दिल में हौसले का संचार किया ।

ज़ाकिर हुसैन said...

बहुत खूब!
छोटी सी पॉँच लाइनों में इतना कुछ कह डाला
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. काफी अच्छा लगा
साथ ही मुझे अपनी कीमती सलाह से नवाजने का भी शुक्रिया!

Udan Tashtari said...

बहुत खूब!बहुत बधाई.

seema gupta said...

भय और अंधेरे को
भेदने की इच्छा भी
" very daring and inspiring"